न पूछो किस तरह कटी विरह में चांदनी की रात, परेशां मन भटककर रह गया जैसे अधूरी बात। नहीं संयम रहा खुद पर जवां जब चांद इठलाया,
खिली चंपा की खुशबू ने, महकता इत्र बिखराया।
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