$ 0 0 शर्मे हयात गर तू यूं करती रही जिन्दगी की पतवार फिर, न संभले कभी बीत जाएगी जिन्दगी मेरी, फिर उस जहां में जहां हुस्ने-मलिकाएं नित संवरती रही'